इस भव्य और विशिष्ट मंदिर का निर्माण 1025 से 1050 ईस्वी के दौरान हुआ था। जिस परिसर में यह मंदिर स्थित है उसे अपने अलंकृत और अद्भुत वास्तुशिल्प के लिए जाना जाता है। इस परिसर का यह सबसे बड़ा मंदिर है। इसकी कलात्मक विशेषता और महत्व का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां दो और तीन फ़ुट ऊंची मूर्तियांें की संख्या 872 है और छोटी मूर्तियों की तो कोई गिनती नहीं है। इस मंदिर की ऊंचाई क़रीब 31 मीटर है जिसकी संरचना कैलास पर्वत की चोटी के समान दिखाई देती है। इस मंदिर में शिवलिंग के अलावा देवी-देवताओं की कलात्मक मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं। मध्यभारत में वास्तुकला का ऐसा बेजोड़ नमूना कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
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